भरी महफ़िल में



भरी महफ़िल में ना इस कदर मुझे देखा करो
ये सारे नजारे बैठे लोग  देखा करते है
मै तो समझ नहीं पाता तेरे इशारे को
पर महफ़िल में बैठे लोग सब समझा करते है

ये तेरी गुस्ताख निगाहे
जब भी मेरे आँखो से मिलती है
सुलझाती कुछ नहीं, और भी उलझा देती है
ना  जाने तू देखती है प्यार से,
या तेरे देखने का तरीका ही यही है
इतना समझने कि कोशिश किया
पर न जाने क्यों समझ में ना आती है
जब जब तू देखा करती है
हर बार दिल में एक सवाल उमड़ आती है
कि तू देखती है प्यार से,
या तेरे देखने का तरीका ही यही है

अगर नहीं समझ पाता,इशारो कि भाषा
तो क्यों ना बोल के ही समझा देती है
कही यैसा न हो, कि होजाउ तुझसे दूर
फिर समझ में आये तेरे इशारो कि  भाषा
तो फिर होगा खुद पे अफसोस ज्यादा 
कि क्यों ना समझ पाये तेरे इन इशारो कि भाषा


 «« मेरी निगाहे भीड़ में न अटकी होती  »»                              «« यु न इस कदर  »»



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